(Video) भारतीय कला एवं संस्कृति (Indian Art & Culture) कोणार्क का सूर्य मंदिर (Temple Architecture: Konark Sun Temple)
मुख्य बिंदु:
- उड़ीसा का नाम लिया जाए और पुरी और सूर्य मंदिर की बात न हो तो उडीसा का परिचय अधूरा सा लगता है।
- आज से नहीं बल्कि सैकड़ों वर्षों से उड़ीसा अपने मंदिरों के लिए जाना जाता है।
- जहाँ जगन्नाथ पुरी जाए बिना चार धाम यात्रा अधूरी रहती है वहीं बिना सूर्य मंदिर के भारत के खगोल शास्त्र भी अधूरा सा लगता है।
- हमारी प्राचीन मंदिरों की इसी यात्रा को आगे बढ़ाते हुए हम पहुँच गए है उडीसा के कोणार्क मे स्थित सूर्य मंदिर में।
- समुद्र के किनारे बसे पुरी से लगभग 35 किमी उत्तर पूर्व की तरफ बसा यह मंदिर 13वीं शताब्दी में बनाया गया था।
- इस मंदिर को बनाने का मुख्य श्रेय गंगवंश के राजा नरसिंह देव प्रथम को जाता है।
- कहा जाता है कि राजा को खगोलशास्त्र मे विशेष रुचि थी तो उन्होनें एक ऐसे मंदिर बनाने की सोची जो अध्यात्म के साथ-साथ वैज्ञानिकता मे भी खरा उतरे। और इसके लिए उन्होनें चुना उस समय के बेहतरीन Architect व Astrologer विशु को।
- फिर क्या था, भारत की महान प्रचीन स्थापत्य कला का प्रयोग करते हुए उन्होनें कलिंग शैली मे एक बेजोड़ मंदिर का निर्माण करवाया।
- ’कोणार्क ’ अगर इस शब्द पर गौर करे तो यह दो शब्दों के मेल से बना है कोण यानि Angle और अर्क यानि सूर्य।
- यह नाम अपने आप मे इस मंदिर की विशेषता को बतला देता है।
- लाल बलुआ पत्थर और ग्रेनाइट की चट्टानों को तराशकर बनाए गए इस मंदिर में भगवान सूर्य के तीनों रुपों को विद्यमान है।
- इन तीनों रुपों यानि शिशु अवस्था और प्रौढावस्था को मूर्ति रुप मे प्रदर्शित किया गया है।
- इस संपूर्ण मंदिर को एक रथ की आकृति दी गई है।
- हिन्दू धर्म के अनुसार भगवान सूर्य सात घोडों वाले एक रथ मे चलते है जिसमें 24 पहिये होते है। इसीलिए इस मंदिर को भी एसे ही बनाया गया है।
- इस मंदिर को तीन भागों में विभाजित किया गया है जो कि मुख्य मंदिर है गर्भगृह जिसे देउत कहा जाता है मंडप और नृत्य गृह।
- समय के साथ इस मंदिर का लगभग 80 प्रतिशत भाग टूट चुका है। नृत्यगृह के अब अवशेष ही बचे है परन्तु मुख्य मंदिर का कुछ भाग अभी भी शेष है जिसमें मूर्तियां रखी है।
- मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार पर ही हाँथी और शेर की विशाल मूर्तियां बनी है जिसमें शेर द्वारा हाँथी पर हमला करते हुए दिखया गया है।
- नृत्य भवन की दीवारों पर बनी मूर्तियां हैरान कर देती है।
- नृत्यांगनाओं को देवदासी कहा जाता था, जो पारम्परिक नृत्य प्रस्तुत करती थी।
- इस मंदिर में लगभग 270 देवदासियों की मूर्तियां है जिनमें उन्हें अलग-अलग मुद्रा में नृत्य करते दिखाया गया है।
- इस मंदिर में कुछ मिथुन आकृतियाँ भी है जिसके कारण इस मंदिर को खजुराहो भी कहा जाता है।
- इस मंदिर की खास बात यह है कि सूर्योदय के समय पूर्व से आती हुई सूर्य की किरणें नृत्य हॉल और मण्डप को पार करती हुई सीधे गर्भ गृह में रखी मूर्तियों पर पडती है और गर्भगृह का अंदरुनी भाग प्रकाशमान हो जाता है।
- इस मंदिर मे बने रथ के 12 जोड़ी पहिये 12 महीनो को बतलाते है।
- हर पहिये मे 8 मुख्य तीलियाँ है जो दिन के 8 पहर को बताती है दो तीलियों के बीच का अंतर 3 घंटे का है।
- हैरानी की बात यह है कि आज भी यह तीलियाँ क्षतिग्रस्त होने के बाद भी लगभग सही समय बताती है।
- मंदिर के रथ में लगे सात घोड़े, सूर्य के प्रकाश के सात रंग सप्ताह के सात दिनों को बताते है।
- कुछ इतिहासकार मंदिर के क्षतिग्रस्त हाने के पीछे बाह्य आक्रंताओं को बताते है।
- कहा यह भी जाता है कि राजा नरसिंह देव की अकाल मृत्यु हो जाने के कारण मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो पाया और मंदिर अस्थिर होने के कारण गिर गया।
- सटीक खगोलशास्त्र व अद्भुत नक्काशी के कारण UNESCO ने इसे 1984 World Heritage Sites में इसे जगह दी है।
- जो सदियों पुरानी गणितीय सूत्रों पर अधारित है।
- अपने काल से बहुत आगे की सोंच पर बनी यह संरचना हमें बीते हुए कल पर सोंचने को मजबूर कर देती है।
- गुरुदेव रवीन्द्र नाथ टैगोर ने कोणार्क के मंदिर को देखकर कहा था कि यहाँ पत्थर मनुष्य से भी बेहतर भाषा बोलते है।
- यह मंदिर सिर्फ एक मंदिर ही नहीं बल्कि एक खगोलीय उपकरण यानि Astronomical Instruments है जो अकाश में चल रही सूर्य की संपूर्ण यात्रा का विवरण मनुष्य को समझाता है।
- टाज से लगभग 800 वर्ष पहले ऐसे मंदिर की कल्पना करना जो आज भी वैज्ञानिकता के प्रमाणों पर खरा उतरता है, यह सामान्य नहीं बल्कि अद्भुत रचना का प्रमाण है।